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नौ गौरी में से एक हैं श्रृंगार गौरी. श्रृंगार गौरी आजकल चर्चा में हैं. चर्चा की वजह है एक विवाद. पूजा से जुड़ा ये विवाद है वाराणसी शहर का. जी हां, गंगा की कल-कल बहती धार की तरह सुरीले संगीत का शहर वाराणसी. हां, वही वाराणसी जिसे दुनिया बनारस, काशी, मोक्षदायिनी और न जाने कितने नामों से जानती है. अर्धचंद्राकार घाटों के शहर वाराणसी में गली-गली में दूध-दही-लस्सी की दुकानें हैं तो मलाई और रबड़ी के साथ चाय की भी.
चाय में घुलकर जिस तरह चीनी अपना अस्तित्व खो बैठती है, वैसी ही है बनारस की तासीर. अलौकिक मिजाज वाले शहर वाराणसी की सामाजिक समरसता देखकर बरबस ही ये बोल फूट पड़ते हैं- 'जियो रजा, ई बनारस हौ.' वाराणसी इन दिनों अपनी गंगा-जमुनी तहजीब या कोई विशेषता या विरासत नहीं, श्रृंगार गौरी और ज्ञानवापी मस्जिद के विवाद की वजह से चर्चा में है. आइए, जानते हैं इस विवाद की शुरुआत से लेकर इसके आध्यात्मिक, सामाजिक और राजनीतिक हर पहलू को.
विवाद की तह में जाने से पहले श्रृंगार गौरी की आध्यात्मिक मान्यता पर नजर डालते हैं. श्रृंगार गौरी की पूजा वासंतिक यानी चैत्र नवरात्रि की चतुर्थी को की जाती है. ऐसी मान्यता है कि चैत्र नवरात्रि के चौथे दिन देवी श्रृंगार गौरी की आराधना का विशेष महत्व है. सुहागिन महिलाएं श्रृंगार गौरी को सिंदूर चढ़ाती हैं. श्रृंगार और सौंदर्य की देवी श्रृंगार देवी की पूजा से जीवन में सुख-समृद्धि आती है, ऐसी मान्यता है. श्रृंगार गौरी की पूजा के लिए कोई मंदिर नहीं है.
वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद की चहारदीवारी से कुछ ही दूरी पर एक चबूतरा है. इसी चबूतरे में श्रृंगार गौरी की आकृति उभरी है जिसकी पूजा की जाती है. यहां तक जाने की इजाजत पुलिस-प्रशासन अब श्रद्धालुओं को नहीं देता. यहां साल में एक दिन, वासंतिक नवरात्रि की चतुर्थी के दिन ही आम श्रद्धालुओं को दर्शन-पूजन के लिए जाने दिया जाता है. अब यहीं पर हर रोज पूजा-अर्चना के अधिकार और कथित तौर पर ज्ञानवापी मस्जिद में मौजूद विग्रहों का मामला कोर्ट पहुंचा है.
कोर्ट के आदेश पर ज्ञानवापी मस्जिद में कमीशन की कार्यवाही शुरू हुई तो इसके बाद जो हुआ, जो हो रहा है वह सब इन दिनों सुर्खियों में है. अब सवाल ये उठता है कि इस विवाद की शुरुआत आखिर कैसे और कब हुई? आखिर क्यों ये नौबत आ गई कि मठ-मंदिरों का शहर कहे जाने वाले वाराणसी में एक देवी की हर रोज पूजा के अधिकार के लिए भी न्यायपालिका की ओर देखना पड़ रहा है?
ये विवाद आज सुर्खियों में है लेकिन ये कोई नया नहीं है. इस विवाद की जड़ें 1990 के दशक से जुड़ी हैं. ये वही दौर था जब अयोध्या का राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर था, उसी दौरान वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद विवाद की भी शुरुआत हो गई. साल 1992 में अयोध्या बाबरी विध्वंस की घटना हुई तो इसके बाद सामाजिक सौहार्द मानों गोधुलि बेला में प्रवेश कर गया हो. 'अयोध्या तो बस झांकी है, काशी-मथुरा बाकी है' जैसे नारे फिजां में तैरने लगे. माहौल को भांपते हुए वाराणसी का पुलिस-प्रशासन भी अलर्ट मोड में आ गया था.
ज्ञानवापी मस्जिद और काशी विश्वनाथ मंदिर के आसपास सुरक्षा कड़ी की जाने लगी. सुरक्षाकर्मियों का जमावड़ा बढ़ा दिया गया. बैरिकेडिंग होने लगी. स्थानीय लोग बताते हैं कि तब तक भी सबकुछ सामान्य था. आसपास के लोग या दूर-दराज से आए श्रद्धालु हर रोज श्रृंगार गौरी का दर्शन-पूजन किया करते थे. समस्या शुरू हुई साल 1993 से, जब सुरक्षाकर्मी पूजा-अर्चना करने पहुंचने वाले श्रद्धालुओं के साथ टोका-टाकी करने लगे. इस समस्या ने विकराल रूप धारण किया साल 1996-1997 में.
पुलिस-प्रशासन ने बंद कर दिया श्रृंगार गौरी का रास्ता
विश्वनाथ मंदिर के समीप स्थित कालिका मंदिर के महंत सुरेंद्र तिवारी बताते हैं कि 1996-97 में हिंदू और मुस्लिम, दोनों धर्मों के त्योहार एक ही दिन पड़ गए थे. फिजां में राम मंदिर आंदोलन का रंग घुला था और विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद भी आकार ले रहा था. पुलिस प्रशासन ने एहतियातन केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की एक टुकड़ी की तैनाती कर दी जिससे कानून-व्यवस्था बनाए रखी जा सके. अधिकारियों के तबादले हुए और रिजर्व पुलिस के तौर पर की गई सीआरपीएफ की तैनाती वहां स्थायी हो गई. महंत बताते हैं कि गुजरते समय के साथ श्रृंगार गौरी जाने वाले रास्ते को भी पुलिस-प्रशासन ने बंद कर दिया. कई साल तक श्रृंगार गौरी की पूजा से श्रद्धालु वंचित रहे और फिर मामला कोर्ट पहुंचा.
कोर्ट के आदेश पर मिला साल में 1 दिन पूजा का अधिकार
विश्वनाथ मंदिर के करीब ही रहने वाले अंकित मिश्रा बताते हैं कि एक हिंदूवादी संगठन की अर्जी पर कोर्ट ने वासंतिक नवरात्रि के चौथे दिन दर्शन-पूजन करने का आदेश दिया. कोर्ट के आदेश के बाद श्रृंगार गौरी की साल में एक दिन वासंतिक नवरात्रि की चतुर्थी को दर्शन-पूजन की अनुमति प्रशासन ने दी.
काशी विद्वत परिषद के मंत्री और काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के संस्कृत विद्या धर्म संकाय के ज्योतिष विभाग में प्रोफेसर पंडित रामनारायण द्विवेदी ने कहा कि हमारे शास्त्रों में, लिंग पुराण, वायु पुराण और स्कंद पुराण में साफ वर्णन है कि भगवान विश्वनाथ के समीप में माता गौरी का जो मंदिर है, वह श्रृंगार गौरी हैं. उनके मुताबिक जिस जगह ज्ञानवापी मस्जिद है, वह बाबा विश्वनाथ का मूल स्थान है.
बन गया बाबा का भव्य कॉरिडोर, अब हो माता का उद्धार
प्रोफेसर द्विवेदी ने कहा कि श्रृंगार गौरी का पूजन अर्चन निर्विवाद रूप से होना चाहिए. उन्होंने ये मांग भी की कि मस्जिद की दीवार में कई शिवलिंग और मूर्तियां हैं जो मस्जिद के अंदर हैं. बाबा विश्वनाथ का स्वयंभू शिवलिंग उसी जगह पर है, जिस जगह पर शास्त्रों में लिखा हुआ है. उन्होंने कहा कि शास्त्र तो खुद प्रमाण हैं लेकिन न्यायालय को और भी वैज्ञानिक प्रमाण देखने चाहिए. पुरातात्विक सर्वेक्षण कराया जाना चाहिए और उसके आधार पर फैसला दिया जाना चाहिए. पूजा का अधिकार मिलना चाहिए.
काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास के ट्रस्टी पंडित दीपक मालवीय कहते हैं कि पहले प्रशासन की ओर से कोर्ट के आदेश के बावजूद साल में एक दिन दर्शन-पूजन में भी व्यवधान डाला जाता था. वे श्रृंगार गौरी की हर रोज पूजा की मांग का समर्थन करते हुए कहते हैं कि कॉरिडोर इतना भव्य बन गया, अब माता का भी उद्धार होना चाहिए. हर रोज पूजा-अर्चना का अधिकार मिलना चाहिए.
विश्वनाथ कॉरिडोर बनने के बाद उठा मसला?
श्रृंगार गौरी की हर रोज पूजा का मामला विश्वनाथ कॉरिडोर का निर्माण पूर्ण होने के बाद क्यों उठा? ये भी एक सवाल आजकल उछल रहा है. इस सवाल पर स्थानीय नागरिक ये दावा करते हैं कि जिस वाद पर अभी कोर्ट में सुनवाई चल रही है, ये वाद भले ही अगस्त 2021 का हो लेकिन ये मामला करीब 25 साल पुराना है. लोग ये भी बताते हैं कि श्रृंगार गौरी के स्थान पर ज्ञानवापी मस्जिद ने कभी दावा किया ही नहीं. विश्वनाथ मंदिर के ट्रस्टी दीपक मालवीय बताते हैं कि जब श्रृंगार गौरी की पूजा-अर्चना पुलिस ने रोक दी थी, तब भी मामला कोर्ट गया था. तब भी लोगों ने कई साल तक संघर्ष किया था. वे पुरानी सरकारों पर सवाल उठाते हुए कहते हैं कि जनभावना, आस्था और श्रृंगार गौरी की उपेक्षा की गई.
5 महिलाओं ने 2021 में दाखिल किया वाद
श्रृंगार गौरी की नियमित पूजा-अर्चना की मांग को लेकर राखी सिंह, लक्ष्मी देवी, सीता साहू, मंजू व्यास और रेखा पाठक नाम की पांच महिलाओं ने वाराणसी के सिविल जज सीनियर डिवीजन रवि कुमार दिवाकर की अदालत में याचिका दायर की. इन महिलाओं ने अदालत से ये मांग भी की थी कि नंदी, गणेश के साथ अन्य देवताओं की स्थिति जानने के लिए एक कमीशन बनाया जाए. सिविल जज सीनियर डिवीजन की अदालत ने अजय कुमार मिश्रा को एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त किया और कमीशन की कार्यवाही, वीडियोग्राफी की कार्यवाही पूरी कर 10 मई से पहले रिपोर्ट देने के लिए कहा.
कोर्ट के आदेश पर एडवोकेट कमिश्नर अजय कुमार मिश्रा ने श्रृंगार गौरी के कमीशन की कार्यवाही की भी, लेकिन इसके बाद जब वे ज्ञानवापी परिसर में दाखिल होने लगे तब हंगामा खड़ा हो गया. मुस्लिम पक्ष के वकील अभय नाथ यादव ने इस पर आपत्ति जताई और एडवोकेट कमिश्नर की निष्पक्षता को लेकर भी सवाल खड़े किए. उन्होंने दीवारों को कुरेद-कुरेदकर दिखाए जाने का आरोप लगाते हुए कमीशन की कार्यवाही पर असंतोष जताया था. मुस्लिम पक्ष ने अगले दिन एडवोकेट कमिश्नर बदले जाने की मांग को लेकर कोर्ट में याचिका दायर कर दी थी. दूसरे दिन जब एडवोकेट कमिश्नर कमीशन की कार्यवाही के लिए ज्ञानवापी पहुंचे, तब हंगामा खड़ा हो गया और कुछ लोगों ने भड़काऊ नारे लगाए. इसके बाद वहां माहौल कुछ समय के लिए तनावपूर्ण हो गया था.
सत्ता के प्रश्रय ने विवाद को दी हवा?
विश्वनाथ मंदिर के ट्रस्टी पंडित दीपक मालवीय ने ये खुलकर कहा कि आज साल में एक दिन भी बगैर किसी व्यवधान के श्रृंगार गौरी का दर्शन पूजन संभव हो पा रहा है तो इसमें सरकार की, स्थानीय जनप्रतिनिधि की बड़ी भूमिका है. वहीं, वाराणसी के वरिष्ठ पत्रकार डॉक्टर श्रीराम तिवारी कहते हैं कि अप्रत्यक्ष रूप से भले ही सत्ता का प्रश्रय मिल रहा हो, लेकिन इस विवाद में अभी तक प्रदेश का कोई भी प्रमुख सियासी दल खुलकर सामने नहीं आया है. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) भी नहीं.
काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी से अलग है ताजा विवाद
अभी जो मामला चर्चा में है, वह काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद के विवाद से अलग है. काशी विश्वनाथ मंदिर और एक बीघे नौ बिस्वा और छह धूर में फैले ज्ञानवापी परिसर का विवाद पुराना है. साल 1991 में एक याचिका दायर हुई थी जिसमें मस्जिद के अंदर सौ फीट ऊंचा स्वयंभू शिवलिंग स्थापित होने का दावा करते हुए पूजा-पाठ और मरम्मत का अधिकार दिए जाने की मांग की गई थी. साल 1998 में मस्जिद की देखरेख करने वाली संस्था ने इलाहाबाद होईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी जिसके बाद सिविल कोर्ट में सुनवाई पर रोक लग गई थी. साल 2019 में भी स्वयंभू ज्योतिर्लिंग विश्वेश्वर की ओर से जिला अदालत में याचिका दायर कर ज्ञानवापी परिसर का सर्वे आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया से कराने की मांग की गई थी. इसका मुस्लिम पक्ष ने विरोध किया था. ये याचिका भी अभी कोर्ट में लंबित है.
पुराना है सियासी कनेक्शन
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने सर्वे के आदेश को पूजा स्थल अधिनियम 1991 का उल्लंघन बताया था. ओवैसी ने कहा था कि इससे मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा का रास्ता खुल जाएगा. ओवैसी के बयान और मामले के सियासी रंग लेने को लेकर डॉक्टर श्रीराम तिवारी ने कहा कि ये कनेक्शन पुराना है. उन्होंने बताया कि श्रृंगार गौरी के नियमित दर्शन पूजन की अनुमति को लेकर विश्व हिंदू परिषद, शिवसेना समेत कई हिंदूवादी संगठनों ने श्रृंगार गौरी मुक्ति आंदोलन चलाए. शिवसैनिक तो सावन के महीने में श्रृंगार गौरी की पूजा करने के लिए जाते और पुलिस उन्हें गिरफ्तार कर चौक थाने ले जाती. उन्हें थाने से रिहा कर दिया जाता.
वाराणसी अड़ियों का शहर है. यहां जगह-जगह अड़ियों पर स्थानीय से लेकर वैश्विक तक, हर तरह के मुद्दों पर चर्चा करते अड़ीबाज नजर आ ही जाते हैं. श्रृंगार गौरी का मसला भी इन दिनों काशी की अड़ी संसद में चर्चा का प्रमुख विषय बना हुआ है. अड़ीबाज पक्ष और विपक्ष में गर्मागर्म बहस कर रहे हैं लेकिन एक बात को लेकर हर अड़ीबाज सहमत नजर आ रहा है. वह ये कि फैसला जो भी बनारसियत बनी रहनी चाहिए.
Story: Bikesh Tiwari
UI Developer: Pankaj Negi
Photo Researcher: Raman Pruthi